बिलासपुर स्टेशन में हमें ये पत्रिका मिली। हम इसका नाम देखकर आकर्षित हुए। और जब इसे पढ़ने लगे तो पढ़ते ही गए। आपका सहृदय धन्यवाद। जो बातें इसमें दी गई हैं, उसकी सत्यता में किसी को कोई संदेह नहीं हो सकता। लेकिन फिर भी ये समझ नहीं आता कि ऐसी बातें हमारे ‘ज्ञानी’ लोग क्यों नहीं बताते? ये तो उनके ज्ञान पर प्रश्न चिन्ह है।
सारे ज्ञान में वो ज्ञान सर्वोपरि है जो ईश्वर से मिलाए और सूफ़ीयाना में शुद्ध रूप से ऐसा ही ज्ञान बांटा जा रहा है। इसमें आडंबर नहीं है, एक दूसरे पर छींटाकशी नहीं है, कट्टरता नहीं है, द्वेष और दुर्भावना भी नहीं है। ये तो अपने अस्तित्व को टटोलने पर मजबूर करने वाली पत्रिका है। विनती है कि इसकी भाषा को सरल करें और एक कॉलम ऐसा शुरू करें जिसमें लोग अपने आध्यात्मिक अनुभव दे सकें। धन्यवाद।